मुझको भी एक बेवफ़ा से प्यार हो गया,
मेरा भी दिल जहां का ग़ुनहगार हो गया।
वो चाहे या न चाहे मैं तो चाहूंगा उसे,
उनकी अदायें दिल के मेरे पार हो गया।
मंज़ूर मुझको हुस्न की हर बेवफ़ाई अब,
उनके सितम से दिल मेरा दिलदार हो गया।
मैं दोस्ती का अर्थ समझता हूं दोस्तों,
ग़लती से मेरे द्वारा पलटवार हो गया।
जब से मिली है दीद हसीना की लोगों को,
अपनी गली में ईद का त्योहार हो गया।
दिल के चराग़ों को जला कर बैठा मैं मगर,
वो आंधियों के कुनबे का सरदार हो गया।
डर लगता मुझको दानी पहाड़ों की ज़ुल्म से,
इमदाद की ज़मीं मेरा संसार हो गया।
जब जी चाहा लोग रिश्तों को तोड़ मरोड़ लेते हैं, ज़रुरत के मुताबिक़ कश्ती का रुख मोड़ लेते हैं।
Friday 15 July 2016
मुझको भी.....
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