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Sunday 26 April 2015

ऐ मौत....

ऐ मौत तू कितनी हसीन क्यूँ है
जो भी तुझसे मिलता है जीना ही छोड़ देता है

मैं तुझसे कब मिल पाउँगा
वो हसीं पल कब देख पाउँगा

अब तो....

अब तो जी करता है सब छोड़ के चला जाऊ
तेरी महफ़िल तेरी यादें तुझको भी छोड़ जाऊ

Tuesday 21 April 2015

जब कोई अरमां दिल में मचलता ही नही.....


क्यूँ रखु मै अपनी कलम में स्याही,
.....जब कोई अरमां दिल में मचलता ही नहीं ....
न जाने क्यूँ शक करते है लोग मुझ पर,
.....जब कोई सुखा फूल मेरी किताब में मिलता ही नहीं ....
कशीश तो बहुत है ..... मेरे प्यार में,
.....क्या करू जब कोई पत्थर दिल पिघलता ही नहीं.....
मिला जो खुदा, तो मागुंगी उससे अपना प्यार,
.....मगर सुना है वो... मरने से पहले मिलता ही नहीं .....
क्यूँ रखु मै अपनी कलम में स्याही,
..... जब कोई अरमां दिल में मचलता ही नहीं ...
बहुत सी बातें है...इस दिल में....
....खामोसी से क्यों कोई समझता ही नहीं ......
मिटाना चाहती हूँ अपनी यादों में उसे ...
.....मगर क्या करू ...जब वो चेहरा दिल से हटता ही नहीं.....
क्यूँ रखु मै अपनी कलम में स्याही,
..... जब कोई अरमां दिल में मचलता ही नहीं .

मैं आँसू हूँ.......

मैं आँसू हूँ.......

युग बदलते है,
कहानीयाँ बदलती हैं
आँखे बदलती हैं
मै शाश्वत हुँ
मै कीसी पुरुष के कारन नारी की आँख से गीरा आँसू हूँ

सत्‌युग मे
जब तारामती अपने पुत्र की लाश लेकर मरघट आइ थी
और अपने ही पति ने पैसे माँगे थे तब
मै तारामती की आँख से गीरा था...

त्रेतायुग मे
जब लक्षमण ने राम के साथ वन जाने का निर्णय कीया
तब मै उर्मिला की आँख से गीरा था
और अग्नि परीक्षा के समय मै सीता की आँख से गीरा था

द्वापरयुग मे
धृतसभा मे पांचाली की आँख से गीरा था

कलयुग मे
बुद्ध को भिक्षा देती यशोधरा की आँख से गीरा था

ये कहानी लंबी है.....

Sunday 19 April 2015

दिल निकाल दूं

जब भी मेरी किसी बज़्म में तेरा ज़िक्र आता है
कसम से मेरी आँखों में खून उतर आता है
नफ़रत तुझसे नही खुद से हुई है मुझे बेइंतेहा
न मौत आती है न अब जिंदगी में सुकून आता है ।
दिल निकाल दूं ज़िस्म से अपना जिंदगी फ़ना कर दूं
इस मोहब्बत में कभी कभी ऐसा जूनून आता है 


Saturday 18 April 2015

क्यूँ

क्यूँ अकेले तन्हां छोड़   के  चली  गयी...
अब  अकेले  जीने  को जी  नहीं  करता...

जिन्दगी और मौत....

जिंदगी एक नदी की तरह है ,
ये बहती है और बहती ही चली जाती है ,
जब तक कि मौत के समन्दर में समा नहीं जाती !!

Friday 17 April 2015

नौकरी में

नौकरी के आर्डर में लिखा था कि कंपनी की तरफ से आपको क्वार्टर मिलेगा,

❗और हम इतने भोले थे की जोइनिंग के दिन सुबह गिलास लेकर ऑफिस पहुँच गए थे।
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हम तो....

हम तो ये बात जान के हैरान हैं बहुत
खामोशियों में शोर के तूफ़ान हैं बहुत
बाज़ार जा के खुद का कभी दाम पूछना
तुम जैसे हर दूकान में सामान हैं बहुत
अच्छा सा कामकाज खुली आँख से चुनो
ख़्वाबों के लेन देन में नुक्सान है बहुत
आवाज़ बर्तनों की घरों में दबी रहे
बाहर जो सुनने वाके हैं शैतान हैं बहुत
खुशहाल घर को जाने नज़र किसकी लग गई
हम लोग कुछ दिनों से परेशान हैं बहुत
आवाज़ साथ है न बदन का कहीं पता
अब के सफर में रास्ते सूनसान हैं बहुत..

Tuesday 14 April 2015

अश्को का......

अश्को का भी आँखों से आना जाना रहता है
कभी मिलता है नया, कभी दर्द पुराना रहता है
गम मायूसी तन्हाई सब यूँ ही मिलती रहती है
गर किस्सा मोहब्बत का होता है इश्क़ का फ़साना रहता है
अगर चाहा है किसी को चाहत से ज्यादा, चाहने की
सजा भी मिलती रहती है थोडा जुर्माना रहता है
जहाँ में मोहब्बत का यही अंजाम होता है
या तो मिल जाता है इश्क़ या चालू मयखाना रहता है
प्रेम की कहानी अक्सर एक सी रहती है
धुन तो नयी होती है पर गीत पुराना रहता है

जब जी चाहा.....

जब जी चाहा लोग रिश्तों को तोड़ मरोड़ लेते हैं,
ज़रुरत के मुताबिक़ कश्ती का रुख मोड़ लेते हैं।

मेरी आँखे.......

कभी गौर से देख मेरी आँखे क्या इनमे कहीं बेवफाई है 
क्या कहीं आज भी तेरे लिए प्यार की कोई कमी है 
फिर क्यों तू अपनी बातों के नश्तर मेरे दिल में चुभाता है
मैं आज भी तेरे लिए गैर हूँ मुझे ये अहसास दिलाता है
न जाने कब मेरी महब्बत की फ़रमाँबरदारी पे यकीं होगा
मेरा हर सजदा उस रब से बस तेरा यकीं की चाहता है ।

Sunday 12 April 2015

मैं और मेरी तन्हाई.....

मैं और मेरी तन्हाई अकसर ये बातें करते है ,
तुम होती तो कैसा होता ,तुम ये कहती तुम वो कहती,
तुम इस बात पे हैरान होती ,तुम उस बात पे कितना हंसतीं
तूम होती तो ऐसा होता ,तुम होती तो वैसा होता,
 मै और मेरी तन्हाई अकसर ये बाते करते है।


ये रात है, ये तुम्हारी ये जुल्फ़े खुली हुई है ,
है चाँदनी ये तुम्हारी नजरों से ये मेरी रातें धुली हुई है।
ये चाँद है ये तुम्हारा कंगन ,सितारे है ये तुम्हारा आंचल,
हवा का झोंका है ये तुम्हारे बदन की खुशबु ,
ये पत्तियों की सरसराहट की तुमने कुछ कहा है,
ये सोचता हूँ मै कबसे गुमसुम , की जबकि
मुझको भी ये खबर है की तुम नहीं हो , कही नहीं हो ,
मगर ये दिल है की कह रहा की तुम यही हो यही कहीं हो।


मजबूर ये हालात इधर भी है उधर भी है ,
तन्हाई की एक रात इधर भी है उधर भी ,
कहने को बहुत कुछ है मगर किससे कहे हम ,
कब तक यु ही खामोश रहे और सहे हम
,दिल करता है की दुनिया की हर रस्म उठा दें,
दिवार जो हम दोनों में है आज गिरा दे ,
क्यों दिल में सुलगते रहें हम आज बता दें , हाँ हमे मोहब्बत है
मोहब्बत है मोहब्बत, अब दिल में यही बात इधर भी है उधर भी।


मै और मेरी तन्हाई अकसर ये बाते करते है तुम होती तो कैसा होता
तुम होती तो ऐसा होता तुम होती तो वैसा होता ,
मै और मेरी तन्हाई अक्सर ये बाते करते है।


( ये वो महान रचना है जिसे अमिताभ बच्चन ने फिल्म ''सिलसिला'' के एक गीत ये कहाँ आ गये हम ,के दौरान लता मंगेशकर के साथ पढ़ी थीं।
आज भी ये रचना इतनी ही जवान है जितनी उस समय थी। इसे आज भी अमिताभ बच्चन की आवाज में सुना जाता है। )

मैं और मेरा अकेला पन.....

दिन समाप्त हुआ नहीं जीवन की घड़ियां
अभी मैं हूँ और साथ मेरे एकाकीपन
यह एकांत वृक्ष और यह संध्या
सभी को तुम्हारे आने का विश्वास
सूनेपन से बंजर हुई मन की धरती पर
तुम सावन बन कर छाओगी
विश्वास मुझे, तुम आओगी, तुम आओग....