जब जी चाहा लोग रिश्तों को तोड़ मरोड़ लेते हैं, ज़रुरत के मुताबिक़ कश्ती का रुख मोड़ लेते हैं।
आज इतनी भी नहीं पैमाने में जितनी छोड़ दिया करता था मैखाने में गजब का समय आया है आज जीने की चाह भी छूट गयी है आज