मैं आँसू हूँ.......
युग बदलते है,
कहानीयाँ बदलती हैं
आँखे बदलती हैं
मै शाश्वत हुँ
मै कीसी पुरुष के कारन नारी की आँख से गीरा आँसू हूँ
सत्युग मे
जब तारामती अपने पुत्र की लाश लेकर मरघट आइ थी
और अपने ही पति ने पैसे माँगे थे तब
मै तारामती की आँख से गीरा था...
त्रेतायुग मे
जब लक्षमण ने राम के साथ वन जाने का निर्णय कीया
तब मै उर्मिला की आँख से गीरा था
और अग्नि परीक्षा के समय मै सीता की आँख से गीरा था
द्वापरयुग मे
धृतसभा मे पांचाली की आँख से गीरा था
कलयुग मे
बुद्ध को भिक्षा देती यशोधरा की आँख से गीरा था
ये कहानी लंबी है.....
मै नारी की आँख में बसा हुँ क्यु कि
नारी कि आँख मे प्रेम का वास है.
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