जब जी चाहा लोग रिश्तों को तोड़ मरोड़ लेते हैं, ज़रुरत के मुताबिक़ कश्ती का रुख मोड़ लेते हैं।
ना जाने क्यों रेत की तरह निकल जाते है हाथों से ‘वो लोग ‘
जिन्हें जिन्दगी समझ कर हम कभी खोना नही चाहते .
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